10 रुपये का नोट



ये कहानी दो सहेलियो की है जो 7th class मे एक दूसरे से मिली थी. रीमा और रिया जैसे दो बहने हो, स्कूल मे हर वक्त साथ रहती थी, कई बार तो लोग उन्हे जुड़वा बहनो के नाम से चिढ़ते थे, लेकिन दोनो की बहुत अलग घरो के महॉल से वास्ता रखती थी. रीमा एक बहुत rich family से थी, उसके पापा की newspaper printing press थी, अकेली लड़की थी, उसके पापा ने ही उसके तीन चचेरे भाईयो को पढ़ाया लिखाया और अपने साथ काम  पर लगाया था. रीमा के चाचा का सारा परिवार उनके साथ ही रहता था, सबको अलग अलग मंज़िल दे रखी थी, इस नाते उसका घर भी उसकी लोकॅलिटी मे सबसे बड़ा था.
जबकि रिया, एक बहुत ही साधारण सरकारी कर्मचारी की बेटी थी, जो उसकी फीस भी मुस्किल से भर पता था. लेकिन पढ़ने मे रिया बहुत अच्छी थी और उसका स्वाभाव भी सबसे अलग था. दोस्ती कहा ये differences  देखती है, रीमा तो सिर्फ़ नाम के लिए ही पढ़ती थी, लेकिन जब से रिया से दोस्ती हुई थी वो हर काम मे रिया का साथ देती थी.  रिया घर का बना खाना लाती थी तो रीमा पैसे लाती थी कॅंटीन से खाने के लिए, दोनो मिलकर एक दूसरे का खाना खाती थी. रिया उसका खरीदा खाना खाने मे थोड़ा संकोच करती थी पर रीमा ज़रा भी नही झिझकती थी, उसका खाना खाने मे.
ऐसे ही दोनो दोस्ती का मुकाम चढ़ती हुई, जवान हो गयी, 12th पास कर लिया, एक ही कॉलेज मे भी जाने का तै कर लिया, लेकिन रिया के पापा ने उसको agriculture कॉलेज का फॉर्म भरवा दिया, और entrance exam मे पास होने की वजह से, रिया के पापा ने उसे वाहा जाने के लिए मजबूर किया, रिया को ना चाहते हुए भी रीमा का साथ छोड़ना पड़ा, अपने पापा के सपनो को पूरा करने के लिए उसे अपनी दोस्ती की कुरबानी देनी पड़ी.
आख़िरी दिन जब कॉलेज मे रिया, रीमा से मिलने गयी. दोनो कॉलेज की कॅंटीन मे समोसे खाए और अपने को फोन के ज़रिए जुड़े रहने का वादा किया. रिया बहुत उदास थी; इस लिए रीमा ने उसे एक गिफ्ट दिया, उसने 500 रुपये का नोट निकाला और कहा इस पर अपना नाम लिखो. रिया ने उसे आस्चर्य से देखा,
उसने कहा ," देख क्या रही हो, अपना नाम लिखो," रिया ने वैसा ही किया, फिर रीमा ने उस पर अपना नाम लिखा, और उसे मोड़ कर रिया को दिया, " ये मेरी  निशानी के रूप मे हमेशा अपने पास रखना, जब कभी लाइफ ये नोट मेरे पास आएगा तो मैं समझ जायूंगी की तुम परेशानी मे हो ,तभी इसका इस्तेमाल किया तुमने, फिर मैं तुम्हे खोज लूँगी और अब तुम एक नोट निकालो " रीमा से कहा
रिया ने धीरे से १० रुपये का नोट उसकी तरफ सरकया, रीमा ने उसके हाथ से छीन कर कहा, " अरे दो ना." फिर उस पर अपना नाम लिखा और नीचे रिया को नाम लिखने को कहा, और उसे अपने पास रखते हुए कहा, " ये मेरे पास रहेगा, तुम्हारा गिफ्ट बनकर."
 दो साल बीत गये ,एक दिन रीमा की शादी की खबर आई, रीमा के पापा की तबीयत ठीक ना रहने की वजह से उसकी शादी जल्दी ही कर दी. रीमा अब बरेली चली गयी, कानपुर और रिया से बहुत दूर, रिया पढ़ाई मे डूब गयी और रीमा ग्रहस्ति मे; दोनो को दोनो की खबर नही रही.
कई सालो बाद रिया IAS पास करके DM बनकर बरेली गयी. उस समय तो उसे याद भी नही था की रीमा इसी शहर मे है. कई महीने बीत गये रिया काम मे busy थी, एक दिन गर्मी के दिनो मे  काम से बापस आ रही थी, उसे प्यास लगी तो उसने ड्राइवर को गाड़ी रोकने को कहा और खुद उतर कर पानी लेने गयी. जब दुकान मे उसने पानी लिया तो उस दुकान वाले ने वही १० का नोट चेंज मे उसको दिया, रिया ने वो नोट देखl, तो उसे सब याद आ गया, कार से फिर वो दुकान की तरफ भागी और दुकान वाले से उस नोट के बारे मे जानने की कोशिश की. दुकान वाले ने कहा, " आप से कुछ समय पहले एक औरत आई थी, वो दे गयी थी, अभी ज़्यादा दूर नही गयी होगी, ऑरेंज रंग की साड़ी पहने थी, "
ये सुनकर रीया उस तरफ को भागी, एक बहुत ही पतली सी औरत, अपने आप को उस साड़ी मे छुपाए हुए चली जा रही थी, रिया उसके पीछे गयी और उसे आवाज़ दी , " रीमा."
वो औरत थोड़ा सा थमी, फिर बिना मुड़े चलती रही, रिया ने फिर आवाज़ दी, "रीमा, ये तुम हो रीमा, मैं रिया."  वो औरत जो रीमा ही थी अब और तेज़ी से चलने लगी; रिया भाग कर उसके आगे गयी और उसका रास्ता रोका, रीमा की हालत देख कर रिया सहम गयी, सूती साड़ी, सूखे बाल, फटे होठ, आँखो ने नीचे काले गड्‍ढे, क्लास मे सबसे सुंदर दिखाने वाली लड़की का ये हाल देख कर रिया कांप गयी और कपते होठ से पूछा," रींमा ये तुम्हे क्या हो गया है. ये तुम ही हो." रीमा भी थोड़ी देर तक उसे देखती रही, तभी रिया ने वो १० का नोट उसे दिखाया, वो देख कर रीमा की आँखो से आंशु बहने लगे और वो रिया के गले लग कर रोने लगी.
रिया उसे एक कॉफी शॉप मे ले गयी, दोनो ने कॉफी पी और रीमा ने अपनी आप बीती बताई, "  शादी के कुछ महीने बाद ही पापा की मर्त्यु हो गयी थी, मेरे चचेरे भाइयो ने सारी प्रॉपर्टी अपने नाम कर ली और माँ को सताने लग गये थे, तो रीमा और उसके पति ने उन पर केस कर दिया और माँ अपने साथ ले आए. जिन भाइयो को चाचा जी की मर्त्यु के बाद पापा ने पाला, बड़ा किया, दुनिया ने सर उठाने लायक बनाया उन्ही की बेटी की पीठ मे चुरा भौक दिया, केस जीतने के चक्कर मे इतने पागल हो गये की मुझे मरवाने की कोशिश की, लेकिन मेरे पति कैलाश को किस्मत ने आगे कर दिया और वो भी हुम्हे छोड़ कर चले गये, ससुर तो पहले से नही थे, अब घर मे सिर्फ़ मेरी सास, माँ और मेरी एक बेटी रह गये. सबका पेट पालने वाली मैं अकेली. पति का business ठप्प हो गया, job कही मिली नही, घर मे जो भी था सब बिक गया, ये आख़िरी १० का नोट बचा था जिससे ब्रेड लेने आई थी, ताकि उन लोगो का पेट भर सकु." ये कहकर वो ज़ोर से रोने लगी,
रिया ने कहा, " चलो तुम्हारे घर चलते है" वो रीमा के घर पहुचे, सब लोग बड़े डरे सहमे से बैठे थे,  रिया ने सबको नमस्कार किया और कहा, " रीमा तुम सबका समान बाँध लो, अब से तुम लोग मेरे साथ रहो गे, " रीमा ने सागपगा के पूछा," तुम्हारे घर" रिया ने कहा, " हा मेरे घर, सरकार ने बहुत बड़ा बंगला दिया है और वहा मैं अकेली ही रहती हू," कियो तुम्हारा परिवार कहा है, " रीमा की माँ ने पूछा, रिया ने मुस्कुरा के जवाव दिया," आप लोग मेरा परिवार हो, लेकिन आप चिंता ना करो ,मेरी अभी शादी नही हुई है और मेरी शादी होने तक मैं आप लोगो का सब बlपस आप लोगो के पास ले आयूंगी.ये वादा है मेरा"
ये सुनकर सब की आँखो मे अश्रु आ गये, रीमा की माँ ने उसे गले लगाकर बोला, " भगवान ने तुम्हे हुमारे लिए ही भेजा है यहा, उसकी महिमा अपlर है."
ये सुनकर रिया मुस्कुराइ और मन ही मन सोचने लगी, " शायद आँटी ठीक ही कह रही है, रीमा के दिए आख़िरी नोट से मैने IAS का फॉर्म खरीदा था, यहा आना शायद उसकी ही मर्ज़ी थी या फिर हमारा प्यार." 
कुछ ही महीनो बाद रिया ने अपना वादा पूरा किया,  रीमा के पापा की प्रेस और घर सब रीमा को बापस दिला दिया, और फिर से सब कानपुर मे रहने लगे.
ये कहानी चाहे सच्ची हो या झूठी लेकिन एक बात तो बताती है की रुपये की कीमत नही, देने वाले की तपस्या और चाहत महान होती है, श्रधा से चढ़ाए हुए फूल भी पत्थर की मूरत को सज़ा देते है है और  प्यार से बढ़ाए गये कदमो के पत्थर भी फूल मे परिवर्तित हो जाते है. वो प्यार चाहे दोस्तो का हो या फिर दुनिया मे जन्मे किसी भी रिश्ते का.


                                                     THE END

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