आत्माचेतना - आगे की कहानी



मोहिनी अपना समान पैक करके हिमालया के एक छोटे से गाँव बिंसार मे रुकना तै किया/ दो तीन तक बस वो उसी गाँव मे रही, सुबह आराम से उठना ,आस पास घूमना और गाँव के लोगो से बात करना, नॉवेल पढ़ना बस इतना ही किया, फिर उसे लगाने लगा की वो बहुत अकेली है और जिस खोज मे वो निकली थी वो उसे नही मिल रही है. उस गाँव मे बहुत शांति थी, लेकिन वो जिस मन की शांति के लिए आई थी; वो नही थी, फिर कुछ दिन बाद उसने एक दूसरे गाँव जाने का फ़ैसला लिया, वो जागेस्वर नाम के एक गाँव मे गयी; वाहा शिव जी का बहुत बड़ा मंदिर था और बिंसर से थोड़ा ज़्यादा बसा था. शांति की खोज मे वो इधर उधर भटक रही थी, शायद किसी को ढूँढ रही थी जो उसके सवालो का जवाव दे सके पर, वो कौन है? कहा है ?ये उसे नही पता था .
 ईसी उदेस्य से उसने शिव जी के मंदिर रोज जाना शुरू किया.  वो रोज सुबह शाम मंदिर जाती थी वहा घंटो बैठी रहती थी ,कभी लोगो से बात करती तो कभी बुक पढ़ती रहती थी. आलम  ये थे की सुबह पाँच बजे मंदिर मे घंटी बजाते ही वो उठ जाती थी, एक दिन इसी तरह जल्दी उठकर वो मंदिर चली गयी, मंदिर मे पीछे की तरफ घमते हुए उसने पेड़ो के पीछे कुछ लोगो को बैठे देखा, वो लोग बहुर दूर थे, वो मंदिर से उतर कर धीरे धीरे उनके करीब पहुची तो उसने देखा की एक साधु गेरूए बस्त्रो मे बैठे है, जिनके चारो तरफ एक अजीब से अलौकिक रोशनी है और उन्ही के सामने एक एक पेड़ के नीचे काई लोग बैठे MEDITATION कर रहे है. मोहिनी एक प्रकाश का चक्र देखा, जिसमे अंदर जाने की उसकी हिम्मत नही हुई, वो उन लोगो से कुछ दूर बैठ गयी ताकि उनका MEDITATION ख़तम हो तो वो उनसे जाकर मिल सके, इसी इंतज़ार मे वो एक पेड़ के नीचे बैठ गयी, और उसे पता ही नही चला कब उसकी आँख लग गयी और वो सो गयी. जब जागी तो देखा वहा कोई नही था. दूसरे दिन फिर वो वाहा पहुची, फिर से उनके MEDITATION ख़तम होने के इंतज़ार मे सो गयी. लेकिन इस बार जब वो जागी तो उसने देखा की कोई उसे गेरूए रंग का एक चादर ऊढा गया था. उसने शाम को मंदिर मे जाकर पंडित से पूछा, उसने बताया की कोई सिध्ध व्यक्ति है जो रोज वहा तपस्या करते है, लोग भी उनके पास चुपचाप बैठ जाते है, किसी से बात नही करते, किसी को पता नही कहा रहते है, पर रोज यही मिलते है.
मोहिनी ने ये बात सुनकर तै किया की वो भी कल से वाहा जाकर बैठेगी. सुबह उठा कर वो जाकर उस मंडली मे शामिल हो गयी, पहली बार उसने साधु को सामने से देखा, एक तेज सा था उनके चहरे पर, वो अपनी साधना मे लीन थे, सब लोग उन्हे नमस्कार करके एक एक पेड़ के नीच बैठ रहे थे, मोहिनी ने भी ऐसा ही क्या, सबको देखकर आँखे बंद कर ली. जैसे ही उसने आँखे बंद की,एक श्लोक सा उसके कानो मे गूंजा. उसने उस आवाज़ को पहचानने के लिए अपनी आँखे खोली, लेकिन सब शांत थे और श्लोक भी बंद हो गया, उसने फिर आँखे बंद करी और फिर से श्लोक चालू हो गया, वो समझ गयी की ये उन साधु बाबा का प्रभाव है इसलिय चुपचाप आँख बंद करके बैठी रही. उसे ऐसा लगा जैसे वो फिर से सो गयी थी, जब उसे कुछ आवाज़े सुनाई दी तो उसने आँखे खोली, तो देखा की लोग उठ कर जा रहे थे और आपस मे बात कर रहे थे. साधु बाबा भी वहा नही थे. मोहिनी अपनी जगह से उठी और लोगो से बात करने के लिए उनके पास गयी. एक अमेरिकन LADY उसे मिली और उसने अपना हाथ बढ़ते हुए पूछा,
HI, I AM MOHINI
HI , I AM SANDRA, NICE TO MEET YOU उसने कहा
मोहिनी ने फिर पूछा, " HOW LONG YOU HAVE BEEN COMING HERE?
SANDRA," FROM 10 DAYS, ITS REALLY DIVINE, I AM FEELING PEACE AND DIVINITY INSIDE ME.
मोहिनी, " HAVE YOU EVER MET WITH साधु SORRY SAINT
SANDRA, " SADHU BABA, NO---, WHENEVER I OPEN MY EYES, HE VANISHED
मोहिनी, " ITS VERT STRANGE
SANDRA, " YES IT IS BUT , I ASKED WITH EVERYONE AND EVERYONE HAD SAME EXPERIENCE, BUT HE HAVE SOME SUPREME POWER.

मोहिनी उसकी बाते सुनकर समझ गयी की उसके सवालो का जवाव अगर कोई दे सकता है तो ये बाबा, इसी उमीद से वो रोज वाहा मेडिटेशन करने जाने लगी. जिस शांति की खोज मे वो थी वो उसे मिलने लगी थी, एसा करते हुए महीना बीत गया, वो वहा के माहौल मे घुल सी गयी थी, अब घर की यादे भी कम होने लगी थी, तभी अचानक एक दिन उसके घर से फोन आया की आदिल बहुत बीमार है और हॉस्पिटल मे है, ये सुनकर वो घावारा गयी और उसने ना चाहते हुए भी एक दिन बाद जाने का फ़ैसला कर लिया. जाने से एक दिन पहले वो सुबह से मंदिर मे बैठी थी, दोपहर हो गयी थी, पंडित ने मंदिर बंद करते हुए कहा ," बेटी अब घर जायो, मंदिर अब शाम को खुलेगा" मोहिनी दूर पहाड़ो मे खोई हुई थी, उसने बिना पंडित को देखे बोला, "आज यहा की शांति मैं अपने अंदर भर लेना चाहती हू, कल मैं चली जायूंगी," अच्छा बेटी, जैसी तुम्हारी ईच्छा," ये बोलकर पंडित जी चले गये.
थोड़ी देर बाद मोहिनी से कुछ दूर कोई आकर बैठा, उसने धीरे से उससे पूछा, " जब शांति अपने अंदर ही भारी हो तो कोई उसे बाहर से कैसे भर सकता है, कौन से सवाल है जो तुम्हे इतना परेशान कर रहे है," मोहिनी को लगा पंडित जी ही होंगे इसलिए बिना देखे फिर से उत्तर दिया, " सवाल है कर्म धर्म और इनके बीच दबी हुई शांति की खोज कैसे संभव है" उस व्यक्ति ने कहा, " कर्म ही तुम्हारा धर्म है, और शांति तुम्हारी पूजा, यहा भी तो तुम सुबह मेडिटेशन करके शांति की पूजा ही कर रही हो, बाकी दिन तो तुम खाली रहती हो, तो ये तुम अपने घर पर रह कर भी कर सकती हो, धर्म और पूजा किसी को किसी से अलग नही करती बल्कि लोगो को एकदुसरे से जोड़ती है. दो घंटे ना सही पर एक घंटा या आधा घंटा मेडिटेशन तुम अपने घर पर भी कर सकती हो. शांति तो हमारे अंदर बसी होती है बस हुम्हे खोजने के तरीके नही पता है और उसके लिए हम इतनी दूर आते है."  " लेकिन जो अहसास मुझे यहा हुए वो वाहा कियो नही होते" ये कहकर मोहिनी उनकी तरफ़ पलटी तो देख कर चौक गयी, वो वही बाबा थे जिनसे मिलने के लिए वो इतने दिनो बेचैन थी, घबरा कर बोली, " आप"
कियो मैं नही हो सकता, बाबा ने मुस्कुरे के उत्तर दिया.
"अपनी शांति की पूजा को अपने रोज के कर्मो मे शामिल करके देखो, ये अहसास ज़रूर होंगे, मन और दिमाग़ को शांत रखोगी तो अहसास होंगे, ज़िंदगी को भाग कर नही बल्कि आराम से ख़ुसीयो के साथ बितायोगी तो अहसास होंगे. हर सुबह  ऐसे उठो, जैसे ये तुम्हारे नये बहुत ही सुखद सफ़र शुरुयात है, हर रात इस संतोष से सो जैसे आज का सफ़र पूरा हुया और कल फिर से नयी शुरुयात है और शायद इसी अहसास के साथ ही तुम रोज मेरे पास आती थी."
मोहिनी ने कहा, " लेकिन वो तो आप की DIVINE POWER है जो मुझे खीच रही थी और वो अहसास और शांति कुछ अलग ही थी" उसने चुप होकर उड़ते हुए पंछी को देखा और फिर अभिव्यक्त किया, " जैसे की आसमान मे उड़ते हुए पंछी, जैसे पहाड़ो पे चमकती धूप, और ये  लहलहाते हुए फूल"
बाबा बोले, " ये तुम हो जिसने ये सब किया, मैं नही, मैं तुम्हे नही बुलाया, ना ही तुमसे बात की और ना ही तुम्हारे सपनो मे आया, थोड़ा से हसते हुए फिर बोले बाबा, "ये सारे अहसास तुमने ही जगाए है, ये तुम्हारी ही तपस्या है, ये तुम ही हो, पहचानो अपने आप को, समझो ये सिर्फ़ तुम्हारी ही आत्माचेतना है. बस इतना ही कहूँगा इस जागी हुई चेतना को कल जाकर फिर से सुला मत देना, अब जागी हो तो खुद भी जगाना और औरो को भी जगाना."
मोहिनी थोड़ी देर चुपचाप खड़ी हुई उन पंछी को देखती रही, 5 MINUTE बाद बोली, "शायद आप ठीक कह रहे है" ये कह कर जिसे ही वो पलटी तो देखा बाबा फिर से गायब हो गये थे.
वो शांति से अपने घर चली गयी, कुछ दीनो बाद जब वो अपना BAG UNPACK कर रही थी तो उसे आत्माचेतना नाम की एक छोटी सी किताब मिली, उसने उस किताब को खोला तो उसमे एक फूल था और पहले पन्ने पर एक नोट था,
" ये पुस्प सदा तुम्हे तुम्हारी आत्माचेतना से परिचित करता रहेगा और तुम्हारे ज़ीवन को सुगंधित करता रहेगा, तुम्हे बताता रहेगा की DIVINE POWER तुममे भी है बस तुम्हे उसे ढूँढने की देर है, कियोकि DIVINITY ही DIVINE POWER  को बुलाती है"

                                                                                          THE END

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