अधूरा सफ़र

ज़िंदगी मे कुछ सफ़र ऐसे होते है जो ज़िंदगी भर के लिए तुम्हारे साथ चल देते है और कुछ सफ़र हमेशा अधूरे ही रहते . शायद वो अधूरे सफ़र दिल के इतने करीब होते है कि तह उम्र हमकोअपने अहसासो से बँधे रहते है. रीमा को भी ऐसे ही एक सफ़र का साथी लॅंडन एरपोर्ट पर मिला, जिसे देखकर वो वेशब्द हो गयी.
         हर साल की तरह इस साल भी रीमा क्रिस्मस की छूटीयो के लिए, अपने चार साल के बेटे ओर पति मुकेश के साथ इंडिया आने के लिए एरपोर्ट पर बैठी थी. उसका बेटा अंकुर एरपोर्ट पेर इधर उधर घूम रहा था और मुकेश उसके पीछे पीछे भाग रहा था; रीमा कुछ थकि हुई लग रही है, मुकेश उसके चहरे से समझ गया था इसलिए उसको आराम के लिए बोल कर अपने बेटे अंकुर के साथ चाय लेने चला गया. रीमा अपना सिर चेयर पर रख कर आँखे बंद कर लेती है. सफ़र की थकान अभी से महशुस कर रही थी.
        थोड़ी देर बाद अंकुर भागते हुए आता है और रीमा से कहता है, " देखो मॉम मैने क्या लिया" एक हाथ मे क्रिप्स का पॅकेट और एक हाथ मे चॉक्लेट दिखाते हुए बोलता है. रीमा उसको बहलाते हुए कहती है, " ओह हो! इतनी सारी चीज़े लेली तुमने, खा पायोगे, अंकुर बोलता है ," पापा ने दिलाई," तभी पीछे से मुकेश चाय का कप रीमा की तरफ मुस्कुराते हुए बढ़ता  है और रीमा की बगल वाली सीट पर बैठ जाता है. अंकुर क्रिप्स का पॅकेट खोल कर खाने लगता है. फिर वहा लगी वेनडिंग मशीन के पास जाकर कुछ पाने की उम्मीद से बटन दवा कर खलने लगता है.
     थोड़ी देर बाद बोरडिंग की announcement  होती है ओर सब लोग लाइन मे खड़े हो जाते है. मुकेश बैग और बोरडिंग पास लेकर आगे खड़ा होता है, रींमा अंकुर का हाथ, जॅकेट्स पकड़ कर उसके पीछे. दो लाइन बराबर से चल रही थी, अंकुर अपनी मम्मी के हाथ को आगे पीछे घूमते हुआ आगे चल रहा था. अंकुर अपनी मम्मी का हाथ खिचाता है ओर रीमा बगल मे चल रहे एके शख्स से टकरा जाती है, वो उसको सॉरी बोलने के लिए जैसे ही  ऊपर देखती है उसकी साँसे थम सी जाती है, वो वही ठहर जाती है और वो व्यक्ति भी थम जाता है.
ऐसा लग रहा था की वक्त जैसे थम सा गया हो, वो दोनो एक दूसरे को यकीन दिला रहे थे की ये हक़ीकत नही एक सपना है. मुकेश के आवाज़ देने पर रीमा होश मे आती है और आगे बढ़ जाती है. मुकेश आगे आगे चल रहा था, रीमा अंकुर के साथ पीछे पीछे और वो शक्स, हाशमी ख़ान रींमा के कुछ कदम पीछे.
  रीमा की धड़कने अब तेज़ हो चली थी, कुछ पुराने सोए हुआ अहसास फिर से जाग उठे थे. वो अपने आखो के कोने से उसे देख रही थी और वो भी उसको देख रहा था. मुकेश बार बार पीछे मूड कर रीमा ओर अंकुर को देख रहा था. रीमा का बीता हुआ कल उसके कुछ कदम पीछे चल रहा था ओर आगे आगे उसका फ्यूचर. PRESENT  की कासॅमकस SITUATION मे वो खीची हुई सी चली जा रही थी. जस्बातो के भवर मे आज फिर उसकी नाइया गोते खा रही थी. एरोप्लेन मे घुस कर दोनो अलग अलग लाइन मे चले जाते है. लेकिन आज किस्मत को शायद कुछ और ही मुंजूर था ,बीच की चार सीटो मे तीन रीमा की और एक उस पुराने साथी की थी जो अब रीमा के अहसासो मे जाग उठा था. रीमा दूरी बनाने के लिए अपने और उसके बीच मे अंकुर को बिठा देती है.  सात घंटो से सफ़र मे दो घंटे दोनो चुपचाप एक दूसरे को चोरी की निगाहो से देखते हुए बिता देते है.
अंकुर अब ज़िद्द करके पापा के पास बैठ गया था, रीमा कुछ घावरती हुई सी अपने पुराने साथी के बगल मे. अभी भी दोनो की बात करने की हिम्मत नही हुई थी, बस बंद जुवा से हज़ारो सवाल और जवाव चल रहे थे / कुछ समय बाद अंकुर सो जाता है, मुकेश एक दोस्त मिल जाता है, वो उसके साथ बात करने के लिए पीछे की तरफ चला जाता है.
  अब शायद उस पुराने दोस्त हाशमी ख़ान की रीमा से बात करने की जिग्यासा प्रवल हो जाती है और वो रीमा से कहता है, " बहुत प्यारा है तुम्हारा बेटा", रीमा हामी मे सर हिलाते हुए पूछती है, " कैसे हो तुम?" हाशमी जवाव देता है, " हा, ठीक हू; अभी तक ज़िंदा हू." रीमा सवालिया निगाहो से उसकी तरफ देखती है." वो चुटकी लेते हुए बोलता है, " वैसे ये डरावनी आखो से देखने की आदत गयी नही तुम्हारी. रीमा, " तुम्हारी भी पहेलियो मे जवाव देने की आदत गयी ऩही," हाशमी मुस्कुराते हुए वोला, " चलो सूकर है. हाजिर जवावी अभी तक कायम है तुम्हारी." उसकी बात पर रीमा भी मुस्कुरा देती है  और कहती है, "पुराने कुछ दोस्तो का असर अभी तक कायम है, " हाशमी भी हँस पड़ता है. फिर कुछ देर के लिए दोनो चुप हो जाते है /
   सवाल तो बहुत सारे रीमा के दिमाग़ मे दंड बैठक कर रहे थे पर कौन सा पहले पूछे इसी सोच मे डूबी थी तभी हाशमी  फिर से छेड़ता है , " कहा से पकड़ा ये कार्टून सा पति तुमने, दुकान पर तो मिलते नही है," रीमा उसके सवाल का ईसारा समझ रही थी लकिन नाराज़गी रीमा की ज़्यादा थी, इस लिए उसने कुछ यू जवाव दिया, " कुछ पुराने दोस्त, रास्ते मे भटकने के लिए छोड़ गये थे, उनसे तो बहुत बेहतर है मेरे पति." हाशमी का दिल धक से हो गया कियो वो जनता था की इसरा उसकी तरफ था. हाशमी की आँखे नम थी, वो चुप हो गया था, रीमा को अहसास हुआ तो फिर अपने दर्द के जवाव माँगने के लिए सवाल पूछा, " कहा और क्यो चले गये थे तुम, कहा कहा नही ढूँढा तुम्हे, तुम्हारे घर गयी, तुम्हारे रिस्त्ेदारो के पास गयी, कितने फोन किए, कितने दोस्तो से पता लगवाया. बाद मे महसूस हुआ की जब उसे की कदर नही ; मैं क्यो अपना खून जलायू, इसलिए शादी कर ली,  जहाँ मम्मी पापा ने बोला."

हाशमी बोला , " अच्छा किया, साये के पीछे भागने से कुछ होता भी नही, कभी हम पकड़ भी नही पाते और कभी समझ भी नही पाते, ज़िंदगी आगे बढ़ने का नाम है, आगे ही बढ़ना चाहिए."
रीमा ने फिर बिना पूछे जवाव दिया, " इसीलिए तुम मुझसे बहुत दूर तक आगे बढ़ गये,"
हाशमी समझ गया था की आज उसे सारे जवाव देने ही पड़ेंगे, वो इसके लिए तैयार भी था, उसने बताया, " उस अयोघ्य कांड मे हमरी ज़िंदगी बदल दी, उस दिन तुम्हे घर छोड़ कर हम अयोध्या अपने घर के लिए निकल ही रहे तभी मामू के यहा आब्बू का फोन आ गया और  उन्होने आने से मना कर दिया. अयोघ्या मे  हालात बहुत खराब थे,   मामू मे भी जाने ना दिया, फिर सब जगह कर्फु लग गया/ ६ दिन बाद घर गये तो कुछ नही बचा था, मेरी पूरी बस्ती , मेरा घर सब जल चुका था, कोई नही बचा था, ना आब्बू, ना आम्मि , ना ही हमारी बहेंन.

कुछ पलो  के लिए फिर से खामोसी छा गयी. अब रीमा और हाशमी दोनो की आँखे नम थी, रीमा को समझ नही आ रहा था अब  क्या सवाल करे या क्या जवाव माँगे. हाशमी फिर से वोला, " सब कुछ तावाह हो गया था, मेरी तो ज़िंदगी उजड़ गयी थी /
उन हिंदूयो ने. " ये कहते हुआ हाशमी ने रीमा को देखा और चुप हो गया , तभी उसे अहसास हुआ की रीमा भी हिन्दु है. रीमा ने वर्सो पहले लगी अयोध्या की आग की तपस आज भी उसकी आँखो  मे महसूस कर रही थी . एक नफ़रत की जलन आज तक उसके शरीर को तड़पा रही थी. रीमा चुप थी ; उसने पानी उसकी तरफ बढ़ते हुए वोला, " तुमने मुझे  क्यो नही बताया,"
हाशमी ने पानी पिया और बोला , " एक नफ़रत सी हो गयी थी सभी हिन्दुयो से,  उस नफ़रत के साथ मैं तुम्हे नही मिलना चाहता था, जो नफ़रत मिलने नही दे रही थी वो जिंदगी भर साथ कैसे निभाती."
फिर कुछ देर खामोसी रही, हाशमी रीमा को देख कर फिर से वोला, " ये तो  पता था की हुमारा मिलना आसान ना होगा पर इतना मुश्किल हो जाएगा ,ये भी नही सोचा था, एक बार को तो मन करता था की सब भूल जायू  और तुम्हारे पास चला आयू पर कर ना सका, नफ़रत  प्यार को मिटा तो ना सकी, लेकिन प्यार के काबिल भी ना छोड़ सकी."

 बस इतनी सी दास्तान हमारी, रास्ते मे हुई थी मुलाकात, रास्ते मे हो गयी समाप्त
सजाए हुए खुयाब पूरे हो, एसा ज़रूरी नही होता, हर प्यार तो मंज़िल मिले एसा भी सबकी किस्मत मे लिखा नही होता/

















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