वो रिक्शेवाला



अकीला एक बहुत ही सभ्य और सम्र्ध परिवार मे पाली बढ़ी थी. पापा बैंक मे मॅनेजर थे और माँ स्कूल मे प्रिंसिपल,उस घर एकेली लड़की थी ,एक बड़ा  भाई था इसलिए लाड़ प्यार और पैसो के झूले मे खेलती रहती थी. वो जो चाहती थी वो उसे मिलता था, लेकिन वो कुछ अलग ही .व्यक्तिव थी. बहुत ही एमोशनल, दुनिया को अपनी अलग नॅज़ारो से देखने वाली, दूसरो के दर्द मे दुखी होने वाली और सबको समझने का प्रयास करने वाली. इसलिए भी वो हर जगह सबकी फॅवुरेट थी.
              एक दिन वो कॉलेज से बाहर आकर घर जाने के लिए रिक्शा लिया. जिसे एक बूढ़ा चला रहा था, बहुत ही कमजोर से दिखाने वाला वो रिक्शा वाला, चुपचाप चले जा रहा था. अकीला को तरस भी आ रहा था पर उसे पता था की ये उसकी कमाई का साधन है. इसलिए अपने ध्यान उसने अपनी बुक पर लगा दिया, वो बुक खोल कर पढ़ने लगी. थोड़ी दूर चलाने के बाद उस रिक्शेवले ने उससे पूछा, " किस क्लास मे हो?" अकीला ने जवाव दिया,"  B A second year ,उसने उपर देखा उसे लगा की इसे second year कैसे समझ आएगा इसलिए वो फिर से बोली, " दूसरा साल है कॉलेज मे."     " अच्छा " उसने कहा
थोड़ी देर मे फिर पूछा, " क्या बनाना चाहती हो?"
अकीला ने यूही बेबाक सा जवाव दिया, " कुछ नही"
कुछ नही" उसने आश्‍चर्य से पूछा, अकीला थोड़ा सा सकपका गयी और बोला, " अभी कुछ सोचा नही,"
वो बोला, " सोचना तो चाहिए तुम्हे, तुम्हारी ज़िंदगी  है, इसका फ़ैसला तो तुम्हे ही लेना है, मेरी भी दो बिटिया है और दोनो डॉक्टरी की तैयारी कर रही है, मैने उनसे कह रखा है की तुम बस डॉक्टरी तैयारी करो, मैं सारे खर्चे करूँगा, मैं दो नौकरी करता हू ताकि उनके लिए किताबे ला सकु, एक बार अच्छे नंबर से पास हो जाएँगी तो scholarship  भी मिल जाएगी और उनकी life भी बन जाएगी."
अकीला उसकी ये बाते सुनकर बहुत ही खुश हुई, " जिस देश मे अमीर अमीर लोग भी बेटी को बोझ समझ कर कोख मे ही मार देते है, उसी देश मे एक छोटा से रिक्शे वाले ने कितनी बड़ी बात कह दी और वो भी बड़ी सहजता से, वो चकित भी थी उसकी हिम्मत और उसके साहस को देख कर.
अकीला अभी भी अपने ख़यालो मे खोई हुई थी तभी वो फिर से बोला, " लड़कियो को पढ़ना और किसी मुकाम पर पहुचना बहुत ज़रूरी है, कियोकि वो बहुत भोली होती है, इस समाज को समझने मे धोखा खाती है और फिर हर कोई उनका फ़ायदा उठना चाहता है,
 ये दुनिया एक जंगल है, हर कोई किसी ना किसी का सिकार है बस जीतता वही है जो पहले उचे पयदान पर पहुच जाता है. तुमको भी उचे पयदान पर पहुचना होगा."

अकीला उसकी बाते सुनकर स्तब्ध रह गयी, कुछ कहती उससे पहेले उसका घर आ गया, " बस यही रोक दो,
रिक्शे से उतर कर बोली, " आप थोड़ी देर रूको मैं अभी आती हूँ," ये बोलकर वो अंदर चली गयी, कुछ देर बार एक पोलिथीन का बैग लेकर बाहर आई. और उसकी तरफ़ बढ़ती हुई बोली, " ये कुछ किताबे है, डॉक्टोरी की पढ़ाई की, मेरे भैया की है, उन्होने तैयारी की थी पर पास नही हो पाए, अब वो बिज़्नेस करते है,उन्हे इसकी ज़रूरत नही है, ये तुम अपनी बेटियो को दे देना, उनकी मदद हो जाएगी."
उस रिक्शेवाले के चहरे पर खुशी की चमक आ गयी, जिसे अकीला भी देख सकती थी," धन्याबाद बेटी, भगवान तुम्हे लंबी उमर दे," अकीला ने सर हिला कर बोला, " नही बोलिए भगवान मुझे सद्द्बुधि दे, ताकि मैं भी उचे पयदान पर पहुच सकु" वो हँसी और वो भी मुस्कुराया, अकीला ने पैसे दिए तो उसने नही लिए, बोला तुमने जो दिया है वो अनमोल है, अब और लेने की हिम्मत नही मुझमे."

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