ये दोस्त




दोस्तो के साथ लिखी वो छोटी सी कहानियाँ, खट्टी मीठी सी वो प्यार की जुवनिया/
कभी लड़ना, कभी झगड़ना फिर कभी हँसते खिलखिलते रस्तो की वो कहानिया/
भूल कर भी जिन्हे भूल नही पाते, वो बचपन के मासूम दोस्तो के साथ बीती अनकही सी रहगुजारियाँ/
आज बैठकर सोचती हूँ तो लगता हैं काश मिल जाए फिर से वो मस्ती मे डूबी हसीन सी शैतानिया/
ज़िंदगी के भागते हुए रस्तो मे, काश मिल जाए फिर से वो रातो की खामोशियो मे खोई हुई सी दीवानिया/
काश फिर से मिल जाए सपनो मे खोई वो दोस्तो की आँखों की ईमानदरिया,
काश फिर से मिल जाए वो मुस्कुराते चाहेरो की आनदेखी सी परेशानिया/
हम भी बदल गये , वक्त भी बदल गया, दोस्तो की ईमानदरिया भी बदल गयी/
पढ़े तो हम सब साथ ही थे पर पता नही कहा से आ गयी विचारो की ये दूरिया/
कभी मिलेगें तो पूछेगे ज़रूर, काहा है मेरे दोस्त की वो प्यारी दिलफेक़ गुस्ताखिया/

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