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हमारी कुछ अनकही सी कहानिया

नमस्कार दोस्तो , कुछ अनकही सी कहानिया , ये ब्लॉग उन लोगो को समर्पित है . जो हर पल एक कहानी को जन्म देते रहते है , जो कहानियो मे जीते और हर पल कहानियो को अपने सपनो मे बुनते रहते है . मैं भी उन लोगो मे से एक हू , कहानिया मेरा अस्तित्वा है , दिन - रात सुबह - शाम मेरे दिमाग़ मे नयी , नयी कहानियो गूँजती रहती है जिन्हे मैं लोगो को सुनना चाहती हू पर सुना नही पाती हू .                        आज technology कितनी भी आगे कियो ना हो गयी हो , कहानी बताना और कहानी सुनना सभी को पसंद है   फिर चाहे वो , पड़ोसी के चटपटे affair की कहानी हो , या फिर सास बहू की , बाहें भाई की , दोस्तो की या फिर घर के चौकीदार ओर नौकर की ही कियो ना हो . मेरा मानना है की हर किसी के पास एक कहानी तो होती है सुनाने के लिए , तो कियो ना हम कुछ अंजाने से दोस्त कुछ अनकही सी कहानिया एक दूसरे को सुनाए .                       ईस blog का एक मकसद और है ; काई बार हम बहुत सारी

ओस की बूंदे

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   संजय अभी अभी अमेरिका से आया था और डॉलर एक्सचेंज करने के लिए बैंक गया, वहा एक बहुत पुराना दोस्त शशांक टकरा गया. शशांक, " अरे संजय, कैसे हो ? बड़े दिनो बाद दिखाई दिया." दोनो ने हाथ मिलाया फिर संजय ने जवाव दिया, " हा अभी दो दिन पहले ही अमेरिका से आया हू, मेरे पास तो सिर्फ़ हज़ार ने नोट थे जो की बंद हो गये तो डॉलर्स को चेंज करने आया था और तुम सुनायो तुम कैसे हो और घर मे सब कैसे है? शशांक ने उत्तर दिया, " सब ठीक है, मैं भी यही दिल्ली मे एक प्राइवेट कंपनी मे काम कर रहा हू. बस लाइफ बिज़ी हो रखी है और तुम तो प्राइवेट कंपनी के कम का तरीका जानते हो." संजय मे सिर हिलाते हुए उसकी हा मे हा मिलाई. शशांक ने फिर से पूछा, " तुम्हारा क्या प्लान है, अमेरिका मे ही सेट्ल होना है या फिर बIपस आना है?" संजय मे आराम से जवाव दिया, "नही अभी तो जाब और रिसर्च दोनो मे बिज़ी हू, अभी रिसर्च मे एक साल और बाकी है, फिर देखता हू क्या करना है. और तुम्हारी शादी वादी हुई या नही?" शशांक मुस्कुराते हुए बोला," हा शादी को अभी ६ महीने हुया है." संजय उसे चिड़ते हुए बोला

ये दोस्त

दोस्तो के साथ लिखी वो छोटी सी कहानियाँ, खट्टी मीठी सी वो प्यार की जुवनिया/ कभी लड़ना, कभी झगड़ना फिर कभी हँसते खिलखिलते रस्तो की वो कहानिया/ भूल कर भी जिन्हे भूल नही पाते, वो बचपन के मासूम दोस्तो के साथ बीती अनकही सी रहगुजारियाँ/ आज बैठकर सोचती हूँ तो लगता हैं काश मिल जाए फिर से वो मस्ती मे डूबी हसीन सी शैतानिया/ ज़िंदगी के भागते हुए रस्तो मे, काश मिल जाए फिर से वो रातो की खामोशियो मे खोई हुई सी दीवानिया/ काश फिर से मिल जाए सपनो मे खोई वो दोस्तो की आँखों की ईमानदरिया, काश फिर से मिल जाए वो मुस्कुराते चाहेरो की आनदेखी सी परेशानिया/ हम भी बदल गये , वक्त भी बदल गया, दोस्तो की ईमानदरिया भी बदल गयी/ पढ़े तो हम सब साथ ही थे पर पता नही कहा से आ गयी विचारो की ये दूरिया/ कभी मिलेगें तो पूछेगे ज़रूर, काहा है मेरे दोस्त की वो प्यारी दिलफेक़ गुस्ताखिया/

पिंजड़I

ये है एक लड़की रूपा की कहानी, सुनहरे सपनो से भारी एक भरे पूरे परिवार मे पली रूपा, बेबाक और सच्ची, सबको प्यार करने वाली. उसका स्वाभाव ही ऐसा था था की जो कोई भी मिलता है, वो ही उसका दोस्त बन जाता था , फिर चाहे वो बच्चा हो या बूढ़ा. रूपा का परिवार बहुत ही बड़ा था, चार मजिला बिल्डिंग के उसके दादाजी के घर पर;  वो और उसके मम्मी पापा, बड़ा भाई और छोटी बहेन  के साथ सबसे  नीचे वाले फ्लोर पर अपने दादा दादी के साथ रहती थी. उसके उपर की मजिलो पर उसके एक तायु और एक पर उसके चाचा का परिवार  रहता था. उसके तायु के चार और चाचा के तीन बच्चे थे. इसलिए बहुत बड़े परिवार मे रहती थी जहा सब उसे प्यार करते थे, उसके दोस्त भी काफ़ी थे. ग्रॅजुयेशन ख़तम होने को था इसलिए parents ने शादी के लिए लड़के देखना शुरू कर दिया था. किसी जान पहचान के ज़रिए लॅंडन मे रहने वाले लड़के से बात चली और शादी भी तै  हो गयी . सारी लड़कियो की तरह इसके भी शादी को लेकर कुछ ख्याब थे, वो भी अपनी नयी ज़िंदगी के नये नये सपने बुन रही थी. कुछ महीनो बाद उसकी शादी भी हो गयी और वो शादी करके लॅंडन आ गयी. 2 बेड रूम का सुंदर सा घर मे आकर रहने लगी. 

10 रुपये का नोट

ये कहानी दो सहेलियो की है जो 7th class मे एक दूसरे से मिली थी. रीमा और रिया जैसे दो बहने हो, स्कूल मे हर वक्त साथ रहती थी, कई बार तो लोग उन्हे जुड़वा बहनो के नाम से चिढ़ते थे, लेकिन दोनो की बहुत अलग घरो के महॉल से वास्ता रखती थी. रीमा एक बहुत rich family से थी, उसके पापा की newspaper printing press थी, अकेली लड़की थी, उसके पापा ने ही उसके तीन चचेरे भाईयो को पढ़ाया लिखाया और अपने साथ काम  पर लगाया था. रीमा के चाचा का सारा परिवार उनके साथ ही रहता था, सबको अलग अलग मंज़िल दे रखी थी, इस नाते उसका घर भी उसकी लोकॅलिटी मे सबसे बड़ा था. जबकि रिया, एक बहुत ही साधारण सरकारी कर्मचारी की बेटी थी, जो उसकी फीस भी मुस्किल से भर पता था. लेकिन पढ़ने मे रिया बहुत अच्छी थी और उसका स्वाभाव भी सबसे अलग था. दोस्ती कहा ये differences  देखती है, रीमा तो सिर्फ़ नाम के लिए ही पढ़ती थी, लेकिन जब से रिया से दोस्ती हुई थी वो हर काम मे रिया का साथ देती थी.  रिया घर का बना खाना लाती थी तो रीमा पैसे लाती थी कॅंटीन से खाने के लिए, दोनो मिलकर एक दूसरे का खाना खाती थी. रिया उसका खरीदा खाना खाने मे थोड़ा संकोच करती थी

वो रिक्शेवाला

अकीला एक बहुत ही सभ्य और सम्र्ध परिवार मे पाली बढ़ी थी. पापा बैंक मे मॅनेजर थे और माँ स्कूल मे प्रिंसिपल,उस घर एकेली लड़की थी ,एक बड़ा  भाई था इसलिए लाड़ प्यार और पैसो के झूले मे खेलती रहती थी. वो जो चाहती थी वो उसे मिलता था, लेकिन वो कुछ अलग ही .व्यक्तिव थी. बहुत ही एमोशनल, दुनिया को अपनी अलग नॅज़ारो से देखने वाली, दूसरो के दर्द मे दुखी होने वाली और सबको समझने का प्रयास करने वाली. इसलिए भी वो हर जगह सबकी फॅवुरेट थी.               एक दिन वो कॉलेज से बाहर आकर घर जाने के लिए रिक्शा लिया. जिसे एक बूढ़ा चला रहा था, बहुत ही कमजोर से दिखाने वाला वो रिक्शा वाला, चुपचाप चले जा रहा था. अकीला को तरस भी आ रहा था पर उसे पता था की ये उसकी कमाई का साधन है. इसलिए अपने ध्यान उसने अपनी बुक पर लगा दिया, वो बुक खोल कर पढ़ने लगी. थोड़ी दूर चलाने के बाद उस रिक्शेवले ने उससे पूछा, " किस क्लास मे हो? " अकीला ने जवाव दिया,"  B A second year , उसने उपर देखा उसे लगा की इसे second year कैसे समझ आएगा इसलिए वो फिर से बोली, " दूसरा साल है कॉलेज मे ."     " अच्छा " उसने कहा

आत्माचेतना - आगे की कहानी

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मोहिनी अपना समान पैक करके हिमालया के एक छोटे से गाँव बिंसार मे रुकना तै किया/ दो तीन तक बस वो उसी गाँव मे रही, सुबह आराम से उठना ,आस पास घूमना और गाँव के लोगो से बात करना, नॉवेल पढ़ना बस इतना ही किया, फिर उसे लगाने लगा की वो बहुत अकेली है और जिस खोज मे वो निकली थी वो उसे नही मिल रही है. उस गाँव मे बहुत शांति थी, लेकिन वो जिस मन की शांति के लिए आई थी; वो नही थी, फिर कुछ दिन बाद उसने एक दूसरे गाँव जाने का फ़ैसला लिया, वो जागेस्वर नाम के एक गाँव मे गयी; वाहा शिव जी का बहुत बड़ा मंदिर था और बिंसर से थोड़ा ज़्यादा बसा था. शांति की खोज मे वो इधर उधर भटक रही थी, शायद किसी को ढूँढ रही थी जो उसके सवालो का जवाव दे सके पर, वो कौन है? कहा है ?ये उसे नही पता था .  ईसी उदेस्य से उसने शिव जी के मंदिर रोज जाना शुरू किया.  वो रोज सुबह शाम मंदिर जाती थी वहा घंटो बैठी रहती थी ,कभी लोगो से बात करती तो कभी बुक पढ़ती रहती थी. आलम  ये थे की सुबह पाँच बजे मंदिर मे घंटी बजाते ही वो उठ जाती थी, एक दिन इसी तरह जल्दी उठकर वो मंदिर चली गयी, मंदिर मे पीछे की तरफ घमते हुए उसने पेड़ो के पीछे कुछ लोगो को बैठे देख

आत्माचेतना

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मोहिनी मुंबई मे रहती है.  वो एक multinational कंपनी मे काम करती है उसके दो बेटे है , 16 (आदिल) और 18 (अनुराग) बर्स के और उसका पति सरकारी office मे कार्यरत है. उसकी लाइफ सुबह ६बजे से शुरू होती है और रात को १० बजे तक वो घड़ी के तरह  भागती रहती है. उसके पास अपने लिए कुछ टाइम ही नही होता है. पति, घर ,बच्चे ,रिस्तेदार और ऑफीस बस इनकी ही सेवा मे दिन रात लगी रहती थी. लेकिन एक दिन जब वो ऑफीस से आ रही थी, उसके साथ एक accident हो जाता है, उसके आगे चल रही दो गाडियो का बहुत भयाभय crash हो जाता है , मोहिनी अपनी कार का ज़ोर से ब्रेक लगती है और किसी तरह अपनी को एकदम उन दोनो गाडियो के पास जाकर रोक लेती है लेकिन वो अपनी मौत को अपनी आँखो के सामने देख कर घबरा जाती है, उसे यकीन ही नही हो रहा था की वो बच गयी है ऐसा लग रहा था की जैसे वो एक बहुत गहरे सपने से जाग गयी हो. उसकी कार के आगे पड़े खून से लथपथ शरीरो को वो अपनी कार मे बैठ कर देख रही थी और अपनी ज़ीवन की सारी story उसके दिमाग़ मे flashback हो रही थी, किसी तरह पुलिस के आने के बाद वो वहा से निकल कर अपने घर आ जाती है, नहाने के बाद अपने कमरे मे बैठी थी त